आह वह प्यारी सलीब
1 . आह वह प्यारी
सलीब मुझको दीख पड़ती हैं , 
एक पहाड़ी पर जो खड़ी
थी । 
कि मसीह - ए - मसलूब ने नदामत उठा
, 
गुनाहगारों की खातिर जान
दी । 
बस न छोडूंगा प्यारी
सलीब , जब तक दुनियां
में होगा कयाम । 
लिपटा रहूंगा मैं उसी से , कि मसलूब में
है अबदी आराम ।
2 . आह वह प्यारी
सलीब जिसकी होती तहकीर , 
है मुझको बेहद दिल अज़ीज । 
कि खुदा के महबूब और
जलाली मसीह , 
ने सहा वहाँ दु : ख बेनज़ीर
3 . मुझे प्यारी सलीब में , जो लहूलुहान , 
नज़र आती है खूबसूरती ।
कि खुदा के मसीह ने
कफ्फार दिया 
ताकि मिले मुझे जिन्दगी ।
4 . मैं उस प्यारी सलीब
का रहूं वफादार , 
सिपाही हमेशा ज़रूर । 
जब तक मेरा मसीह
न करेगा मुझे,
अपने अबदी जलाल में मंजूर ।
 
